नदी का पत्थर लिंक पाएं Facebook X Pinterest ईमेल दूसरे ऐप लेखक: RISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्मा - अक्टूबर 20, 2017 यह नदी पहाड़ी चटुल चपल पानी फिसला एक एक पल टेढ़ा मेढ़ा पत्थर मीलों लुढ़का भीतर तक चिकना गोल सजल ©ऋषभदेव शर्मा लिंक पाएं Facebook X Pinterest ईमेल दूसरे ऐप टिप्पणियाँ Moni sharma20 अक्टूबर 2017 को 4:11 am बजेजीवन एक समंदर हैसारे सुख दुख इसके अंदर हैदौलत को देख कर जीना भंवर हैहॄदय में सच्चाई हो यही जीवन का मंतर है।। डॉ मोनिका शर्माजवाब देंहटाएंउत्तरजवाब देंटिप्पणी जोड़ेंज़्यादा लोड करें... एक टिप्पणी भेजें
लेखक: Luv - अक्टूबर 20, 2017 देख रहा था वह भौचक्का एक जब आया था धक्का भक्तों की भीड़ थी जिसने रोंदा सब, कुछ न रख्खा. और पढ़ें
लेखक: Luv - अक्टूबर 20, 2017 सपना जिसे स्वर्ग मिलता है मरकर क्या खुश रहता है? जब लाश पड़ी सड़ती उसकी जैविक चक्र कौन रचता है? और पढ़ें
लेखक: Luv - अक्टूबर 20, 2017 जो सपने मर जाते हैं मर कर कहाँ जाते हैं? कौन पालता है उन्हें जिन्हें वे अनाथ छोड़ जाते हैं? और पढ़ें
जीवन एक समंदर है
जवाब देंहटाएंसारे सुख दुख इसके अंदर है
दौलत को देख कर जीना भंवर है
हॄदय में सच्चाई हो यही जीवन का मंतर है।। डॉ मोनिका शर्मा