लिंक पाएं Facebook Twitter Pinterest ईमेल दूसरे ऐप लेखक: Luv - सितंबर 26, 2017 सत्तर वर्षों से पनपती मक्खियाँ उड़ा रही थीं उनकी खिल्लियाँ केक पर उनके आ बैठींकहा - अब तुम मनाओ खुशियाँ. लिंक पाएं Facebook Twitter Pinterest ईमेल दूसरे ऐप टिप्पणियाँ
लेखक: Luv - अक्तूबर 20, 2017 रात देखे अपने मैले हाथ कटोरी पंजे वाले के साथ कल की सबसे बड़ी ख़ुशी - खूब धो चमकाना अपने हाथ. और पढ़ें
लेखक: Luv - अक्तूबर 20, 2017 धीरे धीरे फासला बढ़ता रहा धीरे धीरे अजनबी बनता रहा एक रात बिस्तर पर पड़े सावन सारा चुपचाप रिसता रहा. और पढ़ें
लेखक: Luv - अक्तूबर 20, 2017 और का स्वर्ग सहती है लार की नदी बहती है शायद उगा कुछ नाबदान में साथ लटकी चमगादड़ कहती है. और पढ़ें
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें